याचिकाकर्ताओं ने जिलाधिकारी की भूमिका पर उठाए सवाल, पीएमएलए जांच की भी मांग
सोनभद्र। बिरसा मुंडा जयंती व भाजपा के जनजातीय गौरव दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री की उपस्थिति से कुछ दूरी पर स्थित एक पत्थर खदान के धंसने से पाँच दर्जन से अधिक मजदूरों के दबने और 15 मजदूरों की मौत के बाद पूरे ज़िले में प्रशासनिक जिम्मेदारी को लेकर बहस तेज हो गई है। इस हादसे के बाद याचिकाकर्ता पक्ष ने दावा किया है कि इस खदान को लेकर पहले से ही पर्यावरणीय शर्तों के उल्लंघन का मामला एनजीटी में लंबित है, लेकिन इसके बावजूद खदान का संचालन जारी रहा।
याचिकाकर्ता ऋतिशा गोंड की ओर से दाखिल 268 पृष्ठों की याचिका में मे० कृष्णा माइनिंग वर्क्स, राधे-राधे इंटरप्राइजेज, मे० साई बाबा स्टोन और मे० कामाख्या स्टोन के खिलाफ पर्यावरण मानकों के कथित उल्लंघन का उल्लेख है। अधिवक्ता अभिषेक चौबे का कहना है कि जिस खदान में हादसा हुआ वह अत्यधिक गहरी, खड़ी दीवारों वाली और “फेरिटिक जोन” के नीचे पानी निकालकर खनन की जाने की वजह से जोखिमपूर्ण बताई गई थी। उनका आरोप है कि इन बिंदुओं को अदालत में दिए गए व्यक्तिगत शपथ-पत्र में पर्याप्त रूप से नहीं दर्शाया गया।

विकास शाक्य, जो पर्यावरण मामलों पर काम करते हैं, का कहना है कि सोनभद्र और मिर्जापुर में खनन व्यवसाय को लेकर एक “संगठित गठजोड़” की चर्चा लंबे समय से होती रही है। उनका दावा है कि खनन क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों के प्रवाह और विभिन्न संस्थाओं की सहभागिता की जांच आवश्यक है। उन्होंने यह मांग भी उठाई कि खनन कारोबार से जुड़े बड़े आर्थिक लेन-देन की प्रकृति को देखते हुए मामले की जाँच पीएमएलए एक्ट 2002 के तहत कराई जानी चाहिए।

याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि अदालत द्वारा 4 नवंबर 2024 को नोटिस जारी किए जाने के बावजूद ज़रूरी कदम समय पर नहीं उठाए गए, जिसके चलते हादसे की गंभीरता बढ़ी। ऋतिशा गोंड ने मृतक मजदूरों के परिजनों को 50–50 लाख रुपये मुआवज़ा, स्थायी रोजगार व सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने की भी मांग की है।
स्थानीय समाजिक संगठनों का कहना है कि इस घटना ने सोनभद्र के खनन सेक्टर में सुरक्षा मानकों, पर्यावरण नियमों और प्रशासनिक निगरानी के मॉडल पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कई ग्रामीणों का कहना है कि यदि इस मामले की उच्चस्तरीय और पारदर्शी जांच नहीं हुई, तो भविष्य में ऐसे हादसे और भी बड़े रूप में सामने आ सकते हैं।



