सोनभद्र।
“तुम्हारे गाँव का मौसम गुलाबी है… काग़ज़ों में हर चीज़ नवाबी है… लेकिन सच?—सच तो वो ज्वाला है जो फाइलों के अंदर सुलगकर गांव की गलियों में धुएँ की तरह फैल रही है।”
जिले में भ्रष्टाचार की जड़ें किस हद तक मजबूत हो चुकी हैं, इसका एक बड़ा प्रमाण ग्राम पंचायत डुमरा में उजागर हुए शौचालय घोटाले और उसके बाद हुई संदिग्ध प्रशासनिक कार्रवाइयों से मिलता है।
जिलाधिकारी द्वारा 06 फरवरी 2024 को फ़ाइनल की गई जांच में ग्राम विकास अधिकारी यशवंत गौतम के विरुद्ध लाखों की अनियमितताएँ, जिसमें 24,71,780 रुपये की गबन की धनराशि, कागज़ी शौचालय निर्माण और ग्राम निधि के दुरुपयोग जैसे गंभीर आरोप सिद्ध हुए थे। आदेश में साफ कहा गया था—
निलंबन,
वसूली,
और विभागीय कार्रवाई की संस्तुति।
लेकिन हुआ क्या?
जिन्हें दंड मिलना चाहिए था,
उन्हें दूसरे ब्लॉक में स्थानांतरण देकर जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत में नियुक्ति दे दी गई।

यह निर्णय पूरे जिले में हलचल मचा रहा है।
लोग कह रहे हैं—
“क्या भ्रष्टाचार का इनाम और बड़ी तैनाती है? क्या जिलाधिकारी के आदेशों की अनदेखी करने का अधिकार किसी को है?”
इसी मुद्दे को लेकर जिलाधिकारी के नाम एक विस्तृत शिकायत पत्र भी दिया गया है, जिसमें गंभीर आरोप हैं कि—
🔹 जिलाधिकारी के आदेशों का अनुपालन क्यों नहीं हुआ।
निलंबन और वसूली की कार्रवाई बीच में ही क्यों रोक दी गई।
🔹 संदिग्ध स्थानांतरण क्यों किया गया।
गबन के आरोपी GVO को नई जगह पोस्ट कर दिया गया।
🔹 नई पोस्टिंग पर पहुँचते ही करोड़ों के भुगतान निपटाए गए।
तेजी से हुआ निस्तारण कई गहरी शंकाएँ पैदा करता है।
शिकायत पत्र में यह भी कहा गया है कि यह पूरा मामला पारदर्शिता के विरुद्ध है और विभागीय मिलिभगत का बड़ा संकेत देता है। यदि जिलाधिकारी के आदेश ही दरकिनार किए जा रहे हैं, तो नीचे के स्तर पर भ्रष्टाचार का संरक्षण स्पष्ट रूप से झलकता है।

जिले के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, जागरूक नागरिकों तथा ग्रामीणों का कहना है कि सोनभद्र के लगभग सभी पंचायतों में शौचालय निर्माण जैसे कार्यों में भारी अनियमितताएँ हैं। काग़ज़ों पर सब गुलाबी और चमकदार, जबकि जमीनी हकीकत काली और सड़ी हुई।
ग्राम पंचायत डुमरा में जांच के दौरान 139 शौचालयों के दावे में केवल 35 शौचालय बने मिले थे।
बाकी 104 शौचालय “कागज़ी निर्माण” थे—रिपोर्टें तैयार, भुगतान जारी, पर ईंट तक नहीं गिरी।
अब सवाल उठ रहा है—
क्या सोनभद्र में भ्रष्टाचार इतना शक्तिशाली हो चुका है कि जिलाधिकारी के आदेश भी फीके पड़ जा रहे हैं?
क्या गबन के आरोपी अधिकारी को संरक्षण मिल रहा है?
और क्या करोड़ों की धनराशि का तेज़ निस्तारण किसी बड़े खेल की तरफ इशारा कर रहा है?
शिकायत में मांगा गया है कि—
- आदेशों की अनुपालन रिपोर्ट तैयार की जाए,
- जिम्मेदार अधिकारियों पर विभागीय जांच हो,
- नई तैनाती और आर्थिक लेनदेन की स्वतंत्र जांच कराई जाए,
- और जिले में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ें उखाड़ी जाएं।
सोनभद्र के ग्रामीण कहते हैं—
“साफ-सफाई के लिए बने शौचालय, खुद भ्रष्टाचार की गंदगी में डूबे पड़े हैं। अब कार्रवाई नहीं हुई, तो पूरा सिस्टम सड़ जाएगा।”
यह लड़ाई सिर्फ एक पंचायत की नहीं,
पूरा जिला इस सवाल से जल रहा है।



