सोनभद्र। सोनभद्र की पत्थर खदानें बंद — राजस्व का भारी नुकसान, हज़ारों मजदूर भुखमरी की कगार पर* 🔥**
सोनभद्र के बिल्ली–मारकुंडी क्षेत्र की पत्थर खदानों पर आज जो ताले लटक रहे हैं, वह किसी एक दिन का नतीजा नहीं, बल्कि वर्षों से चली आ रही प्रशासनिक ढिलाई और DGMS विभाग की चुप्पी का वह कड़वा फल है, जिसे अब पूरा ज़िला निगलने को मजबूर है। सवाल यह है—आख़िर DGMS इतने साल खामोश क्यों रहा? क्या विभाग का काम सिर्फ़ नोटिस भेजना है, या ज़मीन पर सुरक्षा सुनिश्चित करना भी उसकी ज़िम्मेदारी है?
सालों से यहां की खदानें सुरक्षा मानकों से नीचे काम कर रही थीं। मजदूरों की सुरक्षा, खदान प्रबंधन के SOP, ब्लास्टिंग नियम, वेंटीलेशन—सबकुछ कागज़ों में, सिर्फ़ खाने-पूर्ति भर करने के लिए। DGMS के पास पूरी रिपोर्ट थी, खामियां दर्ज थीं, पर कार्रवाई? सिर्फ़ नोटिस भेजकर कर्तव्य पूरा समझ लिया गया।
और फिर आया वह दिल दहला देने वाला हादसा—श्री कृष्णा स्टोन माइंस में 7 मजदूरों की दर्दनाक मौत।
तब जाकर विभाग की ‘कुम्भकर्णी नींद’ टूटी, और अचानक जैसे नियम-कानून याद आ गए। सवाल यह है—
हादसे से पहले DGMS कहाँ था? क्यों नहीं रोका गया असुरक्षित खनन? क्यों नहीं की गई ग्राउंड मॉनिटरिंग?

हादसे के बाद जो हुआ, वह और भी चौंकाने वाला है। विभाग ने ताबड़तोड़ कुछ खदानों को छोड़कर बाकी खदानों को बंद करने का आदेश थमा दिया। इन सभी 37 खदानों को “अत्यधिक ख़तरनाक” बताकर बंद किया गया है। यह दोहरा रवैया किस आधार पर? क्या सुरक्षा के मानक चुनिंदा खदानों पर ही लागू होते हैं? क्या DGMS सिर्फ़ हादसे के बाद खानापूर्ति करने वाला विभाग बन गया है ? आखिर कुछ खदानों में 2019 में तो कुछ में 2020 तो कुछ खदानों में 2022,23 में खान सुरक्षा निदेशालय से धारा 22(3) की जब नोटिस जारी थी तो इतने वर्षों तक आखिर वह कैसे चलती रहीं और आज अचानक DGMS को याद आया कि मैंने वर्षों पूर्व उन खदानों को डेंजरस घोषित कर दिया है और उन्हें बंद करने का आदेश जारी कर दिया। खनन उद्योग पर पैनी निगाह रखने वाले कुछ लोगों ने कहा कि य़ह कुछ और नहीं बस कुछ खनन व्यापरियों को अत्यधिक लाभ पहुंचाने के लिए जारी आदेश है और कुछ नहीं।

🔻 भारी राजस्व हानि — सरकार की नींद टूटी नहीं
इन खदानों के बंद होने से उत्तर प्रदेश सरकार को हर दिन लाखों का राजस्व नुकसान हो रहा है। ट्रांसपोर्ट, रॉयल्टी, प्रोसेसिंग—सब ठप। पुरवांचल की गिट्टी मार्केट में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है। निर्माण कार्य प्रभावित हो चुके हैं। बड़ी परियोजनाएं खतरे में हैं।
🔻 हज़ारों मजदूरों की थाली पर संकट — भूख का साया
सिर्फ़ खदान मालिक ही नहीं, 5 हज़ार से अधिक मजदूर, ट्रक ड्राइवर, लोडर, मशीन ऑपरेटर, हेल्पर—सबकी रोज़ी रोटी अचानक छिन गई।
किसकी गलती?
उन गरीब मजदूरों की तो नहीं।
पर सज़ा वही भुगत रहे हैं।

जहां खदानों के सही प्रबंधन की निगरानी DGMS को करनी चाहिए थी, वहीं विभाग की लापरवाही ने इन मजदूरों को सड़क पर ला दिया है।
🔻 DGMS वाराणसी क्षेत्र का तुग़लकी फ़रमान — उद्योग की कमर तोड़ी
जिस विभाग को सुरक्षा मजबूत करनी चाहिए थी, उसी विभाग ने बिना ठोस आधार के खदानों पर ताले जड़ दिए।
न परिणाम की योजना
न वैकल्पिक व्यवस्था
न समयसीमा
न सुधार मार्गदर्शिका
और हाल यह कि पूर्वांचल का हीरा—डोलो स्टोन—आज खेतों की मिट्टी जैसा हो चुका है।क्योंकि उत्पादन ठप है इसीलिए मार्केट में भारी किल्लत की वजह से तमाम परियोजनाओं पर अचानक से ब्रेक लग गया है। डबल इंजन सरकार के विकास कार्यों को पलीता लगाने का काम खनिज सुरक्षा निदेशालय ने किया है। जिससे जनता में आक्रोश व्याप्त है।

🔴 यह समय है जवाबदेही तय करने का
- DGMS हादसे से पहले क्या कर रहा था ?
- असुरक्षित खदानों को नोटिस देने के बाद भी जब उन्होंने वर्षों तक उस पर अमल नहीं किया तो क्यों चलता रहने दिया गया ?
- हादसे के बाद चुनी हुई खदानों को ही संचालन की अनुमति क्यों ?
- मजदूरों के पुनर्वास की क्या योजना है ?
जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलता, सोनभद्र की पीड़ा को समझना भी मुश्किल है।



