दरमा से विजय विनीत की खास रिपोर्ट
सोनभद्र । जनपद के सदर तहसील क्षेत्र के दरमा गांव में प्रशासनिक खड्यंत्र अभी और कितनी वारदात करना चाहता है यह सवाल अब सोनभद्र जनपद का हर बच्चा-बच्चा जानना चाहता है ।
उल्लेखनीय हैं कि कथित वन भूमि को लेकर पनपे विवाद के चलते अब तक दो लोगों की हत्या हो चुकी है और अभी भी आए दिन तनाव की स्थिति बनी हुई है जिसके चलते कभी भी कोई बड़ी वारदात हो सकती है ।
वह दरमा जो पूरे जनपद में ही नहीं देश में आंदोलन का इतिहास रचा था अपनी एकता व जन आंदोलन को लेकर सुर्खियां बटोरा करता था आज आपस में ही एक दूसरे से कट मरने को लोग उतारू है ।आए दिन जमीन संबंधी विवाद को लेकर कोई न कोई पंचायत कोई न कोई विवाद हो रहा है जो किसी दिन बहुत बड़ी वारदात का कारण बन सकता है । इस मामले में वन विभाग समेत तमाम प्रशासनिक अमले की भूमिका अत्यन्त संदिग्ध प्रतीत हो रही है ।

दरमा का इतिहास जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना होगा । दरमा गांव सदर तहसील क्षेत्र के अंतर्गत आता है सोनभद्र वनप्रभाग़ के पटना वन रेंज कार्यालय के परिसर से दरमा गांव की सीमा शुरू हो जाती है। जब जमींदारी विनाश अधिनियम के दौरान वनों का स्वामित्व रियासतों से हटकर वन विभाग के अधीन किया जाने लगा उसी दौरान वन विभाग ने इस गांव के साथ तिकड़म शुरू कर दिया । दरमा गांव पूरी तरह अनुसूचित जाति बाहुल्य गांव था। इस गांव का संपूर्ण परिवार धांगर बिरादरी का था जो काफी अशिक्षित व अनपढ़ था जैसा कि गांव के लोगों का कहना है की सारी जमीन वर्ग चार की थी जिसे वन विभाग ने चोरी से बगैर ग्रामीणों को सूचना व नोटिस दिए धारा चार घोषित कर दिया ।

गांव चारों तरफ पहाड़ी व जंगलों से घिरा हुआ था इन्हें जब काफी अरसे बाद यह पता चला कि हमारी जमीन तो जंगल विभाग ने हड़प ली है तो वहां के धांगर व बगल के टोले के चेरो जनजाति व कुछ अन्य भी सहयोग में आ गए सभी ने संगठित होकर अपनी सैकड़ो भी है जमीन वन विभाग से छीन कर धीरे-धीरे कब्जा करना शुरू किया और उसे पर खेती करना प्रारंभ कर दिया ।

आदिवासियों की एक जुटता के आगे वन विभाग जब अपने को असहाय महसूस करने लगा तो वह पुलिस महकमें से मदद लेना शुरू कर दिया और इसी के साथ शुरू हुआ यहां के लोगों पर दमन का सिलसिला कभी पुलिस व पी ए सी के लोग जाकर दिन में घर में घुसकर पिटाई करते तो कभी रात में।

मरता क्या न करता की तर्ज पर आदिवासियों ने भी संघर्ष का ऐलान शुरू कर दिया है जब वहां के नौजवान महिलाएं बूढ़े बच्चे सभी उनके खिलाफ सड़कों पर निकले तो पुलिस व वन विभाग ने संयुक्त रूप से इन आदिवासियों पर फायरिंग कर दी उस समय रेंजर के पद पर सौफी राम नामक व्यक्ति तैनात था जिसके ऊपर नवंबर 2004 में हिनौत विस्फोट कांड में नक्सलियों को विस्फोटक पहुंचाने का आरोप भी लगाया गया था ।

इसी के साथ दरमा के लोगों ने वन रेंज कार्यालय पर जो आंदोलन शुरू किया वह देश में मिसाल बन गया लगातार 3 वर्ष से अधिक वहां की महिलाओं ने रेंज कार्यालय परिसर में धरना दिया यह घटना जब अखबार की सुर्खी बनी तो वहां पर तमाम जन संगठनों का आना-जाना शुरू हुआ जन संगठनों के अलावा कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता भी वहां सक्रिय हुए और आदिवासियों ने उसे जमीन पर अपनी खेती-बाड़ी प्रारंभ रखी।

वहां की एक जुटता जनपद के अन्य क्षेत्र के आदिवासियों में एक नया संचार शुरू किया और तमाम गांव में आदिवासियों ने वन विभाग द्वारा हड़पी गई अपनी जमीन को वापस लेना शुरू कर दिया दरमा गांव वन विभाग की आंख का किरकिरी बन गया और वन विभाग ने वहां के लोगों को आपस में लड़ाने के लिए तिकड़म शुरू कर दी जो लोग वन महकमें के लोगों को देखते ही उनसे दूरी बना लेते थे , और बात नहीं करते थे उसी में से कुछ लोग उनके काफी नजदीक हो गए । वर्ष 2016 में बच्चन नमक वृद्ध व्यक्ति की कुछ लोगों ने लाठियो से पीट कर हत्या कर दी। इस मामले में 11 लोगों को जेल हुई कुछ माह बाद सभी जमानत पर छूट कर बाहर आ गए । जैसे ही वह छूट कर बाहर आए उसके कुछ माह बाद ही दूसरे पक्ष के लोगों ने एक आरोपी रामकेवल की लाठियो से पीट कर हत्या कर दी। इस मामले में 6 लोग उम्र कैद की सजा भुगत रहे हैं जबकि पहले वाली हत्या में अभी तक फैसला नहीं आया है।

आज की स्थिति यह है कि जो लोग कभी भी उस जमीन पर काबिज नहीं थे वह जोत कोड करने के लिए जबरिया आमादा है वन विभाग उन्हें मदद कर रहा है और जो लोग एक लंबे समय से उसजमीन पर जोत कोड करते आ रहे हैं उन्हें जोत कोड करने से मना कर रहा है । यह सिलसिला पिछले वर्ष से शुरू है जो इस वर्ष कभी भी गंभीर रूप अख्तियार कर सकता है ।

कुछ सामाजिक संगठनों के लोगों की हस्तक्षेप के चलते अभी तक स्थिति सामान्य बनी हुई है ।लेकिन वन विभाग जो तिकड़म और साजिश में लगा हुआ है उसके चलते कभी भी कोई अप्रिय घटना घट सकती है , वन विभाग के एक दरोगा की भूमिका काफी संदिग्ध बताई जा रही है जो दरमा ही नहीं क्षेत्र के अन्य गांव में भी वनभूमि पर व्यापक रूप से कब्जा करवाने को लेकर चर्चा में है ।

क्षेत्र के शांतिप्रिय लोगों का कहना है कि यदि प्रशासनिक स्तर पर यहां मिल बैठकर समस्या का हल नहीं निकल गया तो वह दिन दूर नहीं जब दरमा और भी हत्याएं हो सकती हैं ।