सोनभद्र से समर सैम की रिपोर्ट
सोनभद्र की चट्टानों में इस बार सिर्फ दरारें नहीं पड़ीं—मज़दूरों के सपनों, उनके बच्चों के भविष्य और गरीब परिवारों की उम्मीदों में भी भूकंप आ गया। कृष्णा माइंस की यह त्रासदी कोई अचानक हुआ हादसा नहीं, बल्कि सत्ता–प्रशासन–खनन माफियाओं के अंधे गठजोड़ से जन्मी एक निर्मम, निर्मोही और नृशंस हत्या है।
सबसे बड़ा प्रश्न जिलाधिकारी के उस हलफ़नामे पर खड़ा है जिसमें खदान को “सुरक्षित और मानक अनुरूप” बताया गया था। आज वही हलफ़नामा रक्त से भीगा प्रमाण है कि कागज़ों में सब हराभरा और ज़मीन पर मौत का गड्ढा। स्थानीय लोग और अधिवक्ता वर्षों से चेतावनी देते रहे—खदान में नियम विरुद्ध खनन चल रहा है, मजदूरों की सुरक्षा भगवान भरोसे है, हादसा होना बस वक्त की दहलीज पर खड़ा है।
लेकिन प्रशासन ने आंखें फेर लीं, क्योंकि खनन माफिया की जेबें और नेताओं की मुस्कान दोनों एक साथ चमक रही थीं।

एनजीटी ने DM बी.एन. सिंह पर अवैध खनन की रिपोर्ट देर से जमा करने पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया—पर यह जुर्माना उन मजदूरों की कीमत का क्या करे जिनकी लाशें अब पत्थरों के बीच से निकाली जा रही हैं? क्या मजदूरों की जान की कीमत बस उतनी है जितनी किसी अफसर का एक दिन का चाय-बिस्किट बजट?
शनिवार की शाम से रेस्क्यू जारी है। विशाल चट्टान के धंसते ही 18 मजदूरों के चीखें चीखों से पहले चटानों ने निगल लीं।
अब तक 8 शव, जिनमें दो सगे भाई भी… दो घरों की खुशियाँ, दो माँओं का सहारा, दो परिवारों की उम्मीदें, एक ही रात में खामोश हो गईं।
सवाल—दोषी कौन?
जवाब—अभी तक कोई निलंबित नहीं।
तीन नामों की FIR दाखिल, एक गिरफ्तारी की चर्चा—पर पुष्टि तक नहीं।
यानि मौतें असली, पर दोषी अभी भी अदृश्य।
यही नहीं, घटना के समय सीएम योगी कुछ ही दूरी पर कार्यक्रम में थे, पर खदानें तब भी असुरक्षित थीं और अब भी।
2012 की एलआईयू व एसपी मोहित अग्रवाल की रिपोर्ट साफ कह चुकी थी—
“जिले की कोई भी खदान संचालन योग्य नहीं, ये मौत के कुंड हैं।”
मगर किसी ने नहीं सुना—क्योंकि खनन माफिया की जेबें शासन की आंखों पर पट्टी बन चुकी थीं।

विपक्ष के नेताओं को घटना स्थल पर जाने से रोका जा रहा है—
क्यों?
क्योंकि वहां की मिट्टी में बस धूल नहीं, शासन–प्रशासन के पापों की परतें भी दबी हैं।
क्योंकि वहाँ जाकर कोई सच बोलेगा, और सच हमेशा सत्ता को चुभता है।
आज मजदूरों का खून सिर्फ चट्टानों पर नहीं बहा—
यह बहा है उन नेताओं की महत्वाकांक्षा पर,
उन अफसरों की लापरवाही पर,
और खनन माफियाओं के लालच पर।

यह हादसा नहीं—
एक सामूहिक अपराध,
एक संगठित हत्या,
और इस प्रदेश की व्यवस्था के मुंह पर तमाचा है।
जब तक इस गठजोड़ की गर्दन नहीं पकड़ी जाएगी,
तब तक सोनभद्र की खदानें पत्थर ही नहीं निकालेंगी—
गरीब मज़दूरों की लाशें भी ईसी तरह उगलती रहेंगी।



