सोनभद्र, 07 सितंबर 2025 : उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में अनुसूचित जाति (एससी) प्रमाणपत्रों के फर्जीवाड़े का मामला लगातार सुर्खियां बटोर रहा है। हाल ही में पुलिस भर्ती प्रक्रिया के दौरान मध्य प्रदेश (एमपी) के कुछ युवक, जो बैसवार जाति से संबंधित हैं, फर्जी एससी प्रमाणपत्र बनवाकर नौकरी हासिल करने की कोशिश में पकड़े गए। इन पर एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि जब पुलिस विभाग में ऐसे मामलों पर सख्ती बरती जा रही है, तो शिक्षा जैसे अन्य विभागों में कार्यरत ऐसे ही लोगों पर क्यों कोई कार्रवाई नहीं हो रही ?
यहां य़ह तथ्य उल्लेखनीय है कि बैसवार जाति मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अंतर्गत आती है, जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में इसे अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित किया गया है। इसी अंतर का फायदा उठाते हुए एमपी के बैसवार समुदाय के कुछ लोग स्थानीय लोगों की मिलीभगत से सोनभद्र का फर्जी निवासी प्रमाण बनवाकर एससी प्रमाणपत्र प्राप्त कर रहे हैं। इससे वे सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं, जो मूल एससी समुदाय के हक पर डाका डालने जैसा है।

पुलिस भर्ती में हालिया घटना ने इस घोटाले को फिर से उजागर किया है। करीब एक पखवाड़े पहले भर्ती परीक्षा के दौरान कुछ अभ्यर्थी पकड़े गए, जिन्होंने एमपी से होने के बावजूद सोनभद्र से एससी प्रमाणपत्र जमा किए थे। पुलिस ने जांच में पाया कि ये प्रमाणपत्र फर्जी थे, क्योंकि अभ्यर्थी मूल रूप से एमपी के निवासी थे और वहां उनकी जाति ओबीसी है। एफआईआर दर्ज होने के बाद इनके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया चल रही है।
हालांकि, यह समस्या सिर्फ पुलिस भर्ती तक सीमित नहीं है। कुछ महीने पहले सोनभद्र के म्योरपुर विकास खंड के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत कुछ अध्यापकों के मामले ने भी खूब चर्चा बटोरी। ये अध्यापक भी एमपी के बैसवार जाति से हैं, जो वहां ओबीसी में आते हैं, लेकिन उन्होंने सोनभद्र से फर्जी एससी प्रमाणपत्र बनवाकर नौकरी हासिल की। खबरों के मुताबिक, इन अध्यापकों की जांच शुरू हुई थी, लेकिन अचानक रुक गई। स्थानीय लोगों का दबी जुबान से कहना है कि इन अध्यापकों को सत्ताधारी दल के एक बड़े नेता का संरक्षण प्राप्त है। इतना ही नहीं, जांच कर रहे शिक्षा विभाग के अधिकारी का स्थानांतरण कर दिया गया, जिससे मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

स्थानीय निवासियों में इस मुद्दे को लेकर गुस्सा है। एक स्थानीय निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यह तो हर समय होता रहा है। पहले भी और अब भी। मूल एससी समुदाय के लोग नौकरियों से वंचित हो रहे हैं, जबकि फर्जीवाड़ा करने वाले मौज मार रहे हैं।इस मामले में य़ह उक्ति सही है – ‘समरथ को नहीं कोउ दोष गोसाई’।”
सोनभद्र जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया कि पुलिस भर्ती जैसे मामलों में सख्ती बरती जा रही है, लेकिन अन्य विभागों में भी जांच की प्रक्रिया जारी है। हालांकि, शिक्षा विभाग से इस संबंध में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। जनता अब इंतजार कर रही है कि कब इन ‘मुन्ना भाई’ जैसे लोगों पर कार्रवाई होगी, जो जुगाड़ से मूल निवासियों के हक छीन रहे हैं।
फिलहाल इस घोटाले से साफ है कि जाति प्रमाणपत्रों की जांच प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता की जरूरत है, ताकि ऐसे फर्जीवाड़े पर लगाम लग सके। जांच एजेंसियां इस दिशा में क्या कदम उठाती हैं, यह देखना बाकी है।