गोरखपुर । हाल ही में गोरखपुर दौरे पर आईं माननीय राज्यपाल के कार्यक्रम के दौरान बड़ा हादसा टल गया। सर्किट हाउस में अचानक बिजली गुल हो गई और जिला अधिकारी को माननीय राज्यपाल को मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में बाहर ले जाना पड़ा। यह घटना बेहद संवेदनशील थी और जनता के लिए महत्वपूर्ण खबर थी, लेकिन गोरखपुर के बड़े अखबारों ने इसे दबा दिया।

सूत्रों के मुताबिक इस घटना को दबाने के पीछे कुछ पत्रकारों और बिजली विभाग के बीच मजबूत लायज़निंग है। आरोप है कि दैनिक जागरण के दुर्गेश त्रिपाठी, आई-नेक्स्ट के सुनील त्रिगुणायत, अमर उजाला के गिरीश चौबे, और हिन्दुस्तान के हरीश उपाध्याय व नीरज मिश्रा ने विभागीय दबाव और व्यक्तिगत हितों के चलते खबर को प्रकाशित नहीं होने दिया।
खासकर दुर्गेश त्रिपाठी पर गंभीर आरोप लगे हैं कि वह बिजली विभाग से कथित मासिक वसूली और सेटिंग के चलते बड़े मामलों को दबवा देते हैं। वे कभी मेडिकल स्टोर चलाते थे और अब विभागीय “बड़े लायज़नर” बन गए हैं। हाल ही में उन्होंने कैम्पियरगंज की दो साल पुरानी फाइलें खोलकर जेई, एसडीओ और एक्सईएन तक को निलंबित करवा दिया।
पत्रकारिता पर सवाल- यह घटनाक्रम गोरखपुर की पत्रकारिता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है कि यहाँ खबरों से ज्यादा डील, सेटिंग और निजी एजेंडे हावी हैं। जनता से जुड़े अहम मुद्दों को दबाकर मनमाने तरीके से अधिकारियों पर कार्रवाई करवाई जा रही है।
जांच और कार्रवाई की मांग- वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार मनोज शुक्ला ने इस पूरे मामले पर संपादकों और प्रबंधन को पत्र लिखकर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि—
दुर्गेश त्रिपाठी और अन्य पत्रकारों से बिजली विभाग की बीट तुरंत वापस ली जाए।
उन्हें लिखित चेतावनी दी जाए कि भविष्य में संवेदनशील खबर दबाने की कोशिश हुई तो कानूनी और विभागीय कार्रवाई होगी।
मीडिया हाउस सुनिश्चित करें कि किसी पत्रकार के निजी हित या लायज़निंग के चलते जनता को खबर से वंचित न किया जाए।
पत्र की प्रतियां गोरखपुर कमिश्नर, जिलाधिकारी, मुख्य अभियंता (बिजली), UPPCL लखनऊ, PUVVNL वाराणसी, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी भेजी गई हैं।