सोनभद्र से vindhyleader के लिए समर सैम की रिपोर्ट
सोनभद्र की उस धरती पर, जहाँ बिरसा मुंडा की जयंती का जश्न मनाया जा रहा था, जहाँ जनजातीय गौरव दिवस की गरिमा पर शासन अपनी उपलब्धियों का ढोल पीट रहा था—उसी धरती के नीचे 15 मज़दूर ज़िंदा दफन हो गए। दूरी बस चंद कदमों की थी, पर फर्क दो दुनिया का—ऊपर माइक, मोहलत और मंच; नीचे चीखें, मलबा और मौत।
यह हादसा नहीं, एक संगठित अपराध है।
यह प्रकृति नहीं, मिलेजुले पापों की सज़ा है।
और इसकी जिम्मेदारी किसी एक ढुलमुल कर्मचारी पर नहीं—जिलाधिकारी से लेकर खनन माफ़िया, सफ़ेदपोश नेता, और सिस्टम में जड़ जमाए संरक्षकों तक जाती है।

जिलाधिकारी का झूठा शपथपत्र—मौत की सरकारी मुहर
याचिकाकर्ता ऋतिशा गोंड की 268 पेज की याचिका के बावजूद जिलाधिकारी ने अदालत में शपथपत्र देकर कहा कि “खदानों का संचालन मानक के अनुरूप है।”
पर जो खदान 500 फीट से अधिक गहरी, बिना हाइट-बेंच, पानी से भरी, और ईसी शर्तों के विरुद्ध चल रही थी—वह सच पहले भी चीख रही थी, आज भी चीख रही है… बस फर्क इतना है कि अब उसकी गोद में मजदूरों की लाशें पड़ी हैं और इनका आंकड़ा छुपाने के लिए प्रशासन हर जतन करने में जुटा है चाहे वह जनप्रतिनिधियों का घटना स्थल तक पहुँच रोक कर अथवा खबर नवीसो का रास्ता रोक कर
क्या यह लापरवाही है?
नहीं।
यह साक्ष्यों की हत्या, सत्य की हत्या, और अंततः मानवता की हत्या है।
इसलिए अदालत में झूठा हलफनामा दायर करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज होना सिर्फ मांग नहीं—न्याय का न्यूनतम कर्तव्य है।

खनन माफ़िया + सफ़ेदपोश = मौत का गठजोड़
मे० कृष्णा माइनिंग वर्क्स के संचालक मधुसूदन सिंह और उनसे जुड़े सफ़ेदपोश वर्षों से सोनभद्र-मिर्जापुर के खनन को अपनी लूट की खान बनाए बैठे हैं। पंचायतों से लेकर बालू और अब पत्थर तक—हर जगह इनकी छाया है, और इस छाया में छिपी हैं करोड़ों की काली कमाई।
यही कारण है कि याचिकाओं, शिकायतों, फोटो, वीडियो, निरीक्षण रिपोर्ट… सब धरे रह गए।
सिस्टम ने आँख मूँद ली क्योंकि अधिकारियों की कुर्सी पर भी वही हाथ रखे थे जिनके ट्रकों पर अवैध खनन लदा हुआ था।
यह मामला PMLEA 2002 के तहत जाँच का माँग करता है—क्योंकि यह सिर्फ अवैध खनन नहीं, मनी लॉन्ड्रिंग का खेल है जिसकी कीमत मज़दूर अपनी जान देकर चुका रहे हैं।

जनता और जिम्मेदारों की चुप्पी सबसे बड़ा अपराध
अगर जनता नहीं जागी और जिम्मेदार मौन रहे तो आज खदान में लोग मर रहे —कल उनके घरों में।
पर्यावरण का संतुलन बिगड़ेगा, ज़मीन धँसेगी, पानी ज़हर बनेगा और बीमारी, भूख, हादसे… यही भाग्य लिख दिया जाएगा।
मुआवज़ा 50-50 लाख दे भी दिया जाए—क्या वह एक बच्चे का पिता लौटा सकता है?
एक बूढ़ी माँ का सहारा?
एक पत्नी का सुहाग?
आज सोनभद्र की खदानें सिर्फ पत्थर नहीं उगल रहीं… वो खून उगल रही हैं
और इस खून को धोने की जिम्मेदारी सिर्फ सत्ता की नहीं—समाज की भी है।
वरना हम सब इतिहास में उस भीड़ की तरह याद किए जाएँगे,
जिसने मौतें देखीं, पर आवाज़ नहीं उठाई।



