सोनभद्र।
शनिवार का दिन…
जनपद सोनभद्र के चोपन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महज़ छह किलोमीटर दूर मंच से विकास के दावे सुना रहे थे, और उसी समय बिल्ली–मार–कुंडी खनन सेक्टर की श्री कृष्णा माइनिंग में ज़मीन चीख़ रही थी, पहाड़ कराह रहा था और अन्दर गहरे अँधेरे में दर्जनों मज़दूर एक साथ ज़िंदा दफ़न हो रहे थे।
दहकती धूप के बीच अचानक धँसी खदान ने फिर साबित कर दिया कि—
खनन माफ़िया का हौसला कानून से बड़ा है, और विभाग की आँखों पर बंदरबाँट की पट्टी बँधी है।

**2012 से 2025 — बदला क्या?
सिर्फ़ मज़दूरों के कफ़न का रंग।**
सन 2012… सपा सरकार का दौर।
इसी बिल्ली–मार–कुंडी सेक्टर में व्यापक अवैध खनन के खुलासे ने पूरे प्रदेश को हिला दिया था।
ज़िलाधिकारी की रिपोर्ट पर कुल 16 लोगों के ख़िलाफ़ FIR दर्ज हुई, जिनमें खनन पट्टेदार, ज़मीनी दलाल और विभागीय कर्मचारी शामिल थे।
जाँच के बाद—
6 आरोपियों को जेल भेजा गया,
4 कर्मचारियों को निलंबित किया गया था,
बाक़ी मामलों पर कार्रवाई “विचाराधीन” बताकर फाइलें धूल खाती रहीं।
लेकिन अफ़सोस…
जेल गए आरोपी कुछ ही महीनों में बाहर आ गए,
निलंबित कर्मचारी वर्षों तक बहाल होकर फिर उसी खेल में लौट आए,
और खनन माफ़ियाओं की गाड़ियाँ फिर पहले की तरह रात में गर्जना करने लगीं।
2025 में 2012 के खनन हादसे की भयावह पुनरावृत्ति
सरकारी दावों और सच्चाई की दूरी बस… छह किलोमीटर!
जब मुख्यमंत्री चोपन के मंच से कानून-व्यवस्था, विकास और मज़दूर-सुरक्षा पर ज़ोर दे रहे थे,
ठीक उसी पल,
ठीक उसी ज़िले में,
ठीक उसी खनन पट्टी में
अवैध ओवरलोडिंग और असुरक्षित कटिंग ने दर्जनों परिवारों की साँसें छीन लीं ऐसी अफ़वाह हर आम ओ ख़ास की ज़ुबान पर है।
सूत्रों का कहना है कि—
खदान की गहराई निर्धारित मानकों से 30–40 फीट अधिक बढ़ाई गई थी।
रात के अंधेरे में डोज़र और जेसीबी से तेज़ी से अवैध कटिंग जारी थी।
विभागीय टीम हर महीने बँटी हुई रक़म की रसीद से ज़्यादा कुछ नहीं देखती थी।
वास्तविकता ये है कि सोनभद्र में खनन विभाग की “मौन सहमति” के बिना एक चट्टान भी नहीं हिलती।

मज़दूरों का दर्द — सरकारों की किताब में सिर्फ़ एक ‘डेटा’
धँसी खदानें, टूटी पहाड़ियाँ, बिखरे शव…
और वही पुराना बयान—
“जाँच होगी।”
“दोषियों पर कार्रवाई होगी।”
लेकिन मज़दूरों की दुनिया में इस कार्रवाई का अर्थ सिर्फ़ इतना है कि—
एक और परिवार रोटी कमाने वाले का चेहरा खो देता है।
सोनभद्र के खनन क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूर आज भी—
बिना हेलमेट,
बिना सेफ्टी किट,
बिना मेडिकल सुविधा,
बिना पंजीकरण
काम कर रहे हैं।
ये मज़दूर इस खनन साम्राज्य के सबसे नीचे वाला पुर्जा हैं—
और जब हादसा होता है,
सबसे पहले कुचले भी वही जाते हैं।
दहकते सवाल जिन्हें सरकार, विभाग और माफ़िया—तीनों से जवाब चाहिए:
- 2012 की FIR के आरोपी आज कहाँ हैं?
क्या वे फिर से खनन पट्टों के खेल में शामिल नहीं? - निलंबित कर्मचारी किसके संरक्षण में फिर बहाल हुए?
- CM के कार्यक्रम से सिर्फ़ 6 किमी दूर खदानें बेखौफ़ क्यों चल रही थीं?
- क्या सोनभद्र में विभागीय मिलीभगत के बिना एक भी अवैध कटिंग संभव है?
- 18 मज़दूरों की हत्या की जिम्मेदारी कौन लेगा ?—
खदान, सिस्टम या भ्रष्टाचार?
अंत में — दहकता आइना हक़ीक़त का
सोनभद्र के पहाड़ गवाह हैं कि यहाँ खनन सिर्फ़ संसाधन नहीं निकालता,
यहाँ गरीबी, मज़दूरी और लाचारगी का ख़ून निचोड़ा जाता है।
और जब खदान धँसती है,
पत्थर नहीं गिरते—
व्यवस्था की पोल गिरती है।
जब तक—
विभागीय मिलीभगत तोड़ी नहीं जाती,
अवैध खनन पर कठोर मुकदमे नहीं चलाए जाते,
और मज़दूरों को दस्तावेज़ी सुरक्षा नहीं दी जाती,
तब तक हर हादसा सिर्फ़ तारीख़ बदलेगा,
सच नहीं।



