—-अंतिम सोमवार को डाक बम के मद्देनजर शिव भक्त पूरे कांवड़ यात्रा के रास्ते पर फल,पानी,दवा आदि सामग्री का किया वितरण
सोनभद्र। शिवद्वार कांवर यात्रा, जिसे आमतौर पर कांवड़ यात्रा के नाम से जाना जाता है, भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाने वाली एक वार्षिक तीर्थयात्रा है। यह यात्रा विशेष रूप से हिंदू कैलेंडर के श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में आयोजित होती है और उत्तर भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय है। इस यात्रा में शिव भक्त, जिन्हें कांवड़िया या भोले कहा जाता है, पवित्र गंगा नदी से जल लेकर अपने स्थानीय शिव मंदिरों या प्रमुख शिव मंदिरों जैसे काशी विश्वनाथ (वाराणसी), बैद्यनाथ (देवघर), या नीलकंठ महादेव में जलाभिषेक करते हैं। सोनभद्र में कांवड़िये प्रसिद्ध ऐतिहासिक विजयगढ़ पर स्थित पवित्र राम सरोवर से जल लेकर वहां से लगभग 80 किलोमीटर की यात्रा कर घोरावल के शिवद्वार में स्थित भगवान शिव के अति प्राचीन मंदिर में जलाभिषेक करते हैं।

कांवर यात्रा की प्रमुख विशेषताएं:
- उद्देश्य:
- यह यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। मान्यता है कि गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जब भगवान शिव ने हलाहल विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। इसके बाद देवताओं ने गंगाजल से उनका अभिषेक किया, जिससे विष का प्रभाव कम हुआ।

- प्रमुख स्थल:
- कांवड़िए हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख (उत्तराखंड), और सुल्तानगंज (बिहार) जैसे पवित्र स्थलों से गंगाजल लाते हैं।
- जल को कांवड़ (बांस के डंडे पर लटके दो पात्रों) में भरकर पैदल लाया जाता है, जो सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा हो सकती है।

- परंपराएं और नियम:
- पवित्रता: कांवड़िए यात्रा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, जमीन पर सोते हैं, और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
- सामग्री: कांवड़, गंगाजल के लिए पात्र, भगवा वस्त्र, रुद्राक्ष, त्रिशूल, डमरू, और फूल जैसी पूजा सामग्री साथ रखी जाती है।
- प्रकार: कांवड़ यात्रा तीन प्रकार की होती है: सामान्य (रुक-रुक कर चलने वाली), डंडी कांवड़ (दंड प्रणाम करते हुए), और डाक कांवड़ (बिना रुके तेजी से चलने वाली)।

- ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व:
- कुछ मान्यताओं के अनुसार, इसकी शुरुआत भगवान परशुराम ने की, जो गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर शिव का अभिषेक करते थे।
- अन्य कथाओं में भगवान राम और रावण को भी प्रथम कांवड़िया माना जाता है। उदाहरण के लिए, राम ने सुल्तानगंज से जल लाकर शिव का अभिषेक किया था।
- श्रवण कुमार की कथा भी प्रचलित है, जिन्होंने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर तीर्थयात्रा कराई थी।

- सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:
- यह यात्रा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है। मार्ग में शिविर लगाए जाते हैं, जहां भोजन, पानी, और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।
- यात्रा के दौरान “बोल बम” और “हर हर महादेव” के जयकारे गूंजते हैं, जो भक्ति और उत्साह का माहौल बनाते हैं।
- आधुनिक बदलाव:
- पहले यह यात्रा पूरी तरह पैदल होती थी, लेकिन अब कुछ भक्त वाहनों का उपयोग करते हैं। डाक कांवड़ में डीजे और सजावट का चलन बढ़ा है।
- प्रशासन द्वारा यात्रा मार्गों पर सुरक्षा, यातायात व्यवस्था, और शिविरों की व्यवस्था की जाती है। उत्तर प्रदेश में हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा भी की जाती है।