MLC की दौड़ में कई नाम चर्चा में हैं. जिनमें कांग्रेस से भाजपा में आए पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद, भाजपा के प्रदेश महामंत्री जेपीएस राठौर और बसपा से भाजपा में शामिल हुए रामचंद्र प्रधान के नाम सबसे आगे हैं.
लखनऊ । उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत चुनावों में भारी बढ़त हासिल करने के बाद विधानसभा चुनाव से पहले सूबे में भारतीय जनता पार्टी विधानपरिषद में अपने नेताओं को मनोनीत करने की कवायद में जुटी हुई है. आनेवाले एक दो दिन के भीतर ही नेताओं का चयन किया जाना है. उसके लिए पार्टी में संगठन से सरकार तक जोड़-तोड़ जोरों पर है. इस जोर आजमाइश में कई लोगों के नाम चर्चा में हैं. जिनमें कांग्रेस से भाजपा में आए पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद, भाजपा के प्रदेश महामंत्री जेपीएस राठौर और बसपा से भाजपा में शामिल हुए रामचंद्र प्रधान के नाम सबसे आगे हैं.
इस बारे में भाजपा ने अपनी तरफ से कई प्रमुख नामों की फेहरिश्त केंद्रीय नेतृत्व को पहले ही सौंप दी है. केंद्रीय नेतृत्व के फैसले के बाद यूपी में चारों एमएलसी के नाम सार्वजनिक किए जाएंगे. यूपी में होनेवाले चुनावों के मद्देनजर इस बार भी एमएलसी के मनोनयन में जातीय समीकरणों का विशेष महत्व रहेगा. ब्राह्मणों को साधने के लिए बीजेपी न सिर्फ जितिन प्रसाद के नाम पर गम्भीर है, बल्कि बीजेपी से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकान्त वाजपेई का नाम भी पैनल में शामिल किया गया है. ठाकुर समाज को संतुष्ट करने के लिए भी जेपीएस राठौर और यूपी का महिला कल्याण राज्यमंत्री के पति दयाशंकर सिंह का नाम भी शामिल है. दयाशंकर सिंह पार्टी संगठन में उपाध्यक्ष भी हैं. हालांकि जेपीएस राठौर का पलड़ा इसमें भारी दिखता है, क्योंकि जिला पंचायत चुनावों से लेकर संगठन के क्रियाकलापों तक में राठौर काफी सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं और इसके परिणाम भी अच्छे देखने को मिले हैं. ऐसे में पार्टी राठौर को इसका इनाम दे सकती है.
कहा यह भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश के हाशिये पर जा रहे और पिछड़े समाज के लोगों को आगे लाने की लगातार बात करते हैं. उस लिहाज से मुख्यमंत्री चाहते हैं कि आनेवाले दिनों में इस समाज की भागीदारी सक्रिय राजनीति में बढ़ाई जाए. इसी कड़ी में अगर मुख्यमंत्री की सलाह पर गौर हुआ तो पूर्वांचल से किसी अनुसूचित जाति के नेता को भी एमएलसी बनाया जा सकता है.
संजय निषाद और जितिन प्रसाद का नाम इसलिए भी मजबूत माना रहा है कि पार्टी को आनेवाले चुनावों से पहले निषाद और ब्राह्मणों को अपने साथ लाने के लिए ज्यादा से ज्यादा दमदार नेताओं का जरूरत है. उसकी वजह यह भी है कि पिछले दो सालों में विकास दुबे जैसी घटनाओं के बाद चर्चा यह हुई कि ब्राह्मण समाज योगी सरकार से नाराज है. हालांकि सरकार और पार्टी ने कई मौके पर साफ किया कि पार्टी को किसी जाति विशेष से बैर नहीं है और कानून के लिहाज से ही किसी के खिलाफ कार्रवाई की जाती है. फिर भी विरोधी ऐसा संदेश देने में कामयाब रहे हैं जिससे आशंका है कि पार्टी को कुछ नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. पार्टी की कई बैठकों में भी ये मुद्दा सामने आया. इन बैठकों में तय किया गया कि किसी भी तरह से ये संदेश नहीं जाना चाहिए कि सरकार किसी के भी खिलाफ जानबूझकर गलत तरीके से कदम उठा रही है. किसी ब्राह्मण को मनोनीत करके पार्टी अपनी इस विचारधारा को पुख्ता कर सकती है. वैसे भी ब्राह्मण और सवर्ण बीजेपी का कोर वोटर माना जाता रहा है. उस लिहाज से भी जितिन प्रसाद को जगह दी जा सकती है.
संजय निषाद ने पार्टी में आते वक्त तमाम दावे भी किए और जिला पंचायत के चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाकर पार्टी की कई जिलों में मदद भी की. लिहाजा माना जा रहा है कि पार्टी निषाद को जगह देगी. बहरहाल ये जातीय समीकरण और कयास पार्टी के भीतर कई दिनों से जोरों पर है. इसी के बीच पार्टी संगठन ने केंद्रीय नेतृत्व को संभावित नामों की लिस्ट सौंपी है. तमाम मुद्दों और हालात पर मंथन करने के बाद बहुत जल्द दिल्ली में बैठे संगठन के नेता तय करेंगे कि विधानसभा चुनावों से ठीक पहले चार एमएसली की सीटों पर ताजपोशी वोटरों को साथ लाने के लिए किस तरह से और कितनी कारगर हो सकती है.