Saturday, April 20, 2024
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कन्हैया कुमार को नए आशियाने की तलाश , थामेंगे राहुल गांधी का ‘हाथ’?

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बिहार की राजनीति के तीन युवा और चमकते चेहरे तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और कन्हैया कुमार बड़ी लकीर खींचने की कोशिश में हैं. खास कर कन्हैया तो मोदी विरोध के प्रतीक बन चुके हैं. लोकसभा चुनाव में शिकस्त मिलने के बाद से वे अपनी राजनीति को नई धार देने में जुटे हैं. हाल के दिनों में उन्होंने कई बड़े नेताओं से मुलाकात भी की है. इनमें राहुल गांधी भी शामिल हैं.

पटना । बिहार की राजनीति में तीन युवा चेहरे अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं. तेजस्वी यादव , चिराग पासवान और कन्हैया कुमार सूबे की सियासत के चमकते सितारे हैं. प्रदेश के युवा भी इन नेताओं के साथ नजर आ रहे हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान जहां रोजगार को लेकर तेजस्वी को युवाओं का साथ मिला तो वहीं, कन्हैया ने भी लोकसभा चुनाव के वक्त खूब सुर्खियां बटोरी थी.

सीपीआई (CPI) ने अपने युवा नेता कन्हैया कुमार को बिहार में चेहरा बनाया और 2019 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय से गिरिराज सिंह के खिलाफ टिकट भी दिया. हालांकि कन्हैया को चुनाव में शिकस्त मिली थी. उसके बाद वे तब विवादों में आए गए, जब पटना के प्रदेश कार्यालय में राज्य सचिव के बीच उलझ गए.

कन्हैया समर्थकों ने उस दौरान खूब बवाल काटा था. बाद में अनुशासनहीनता को लेकर सीपीआई की हैदराबाद में हुई बैठक में कन्हैया के खिलाफ निंदा प्रस्ताव भी पारित किया गया था. उपेक्षा पूर्ण रवैये के बाद से कन्हैया पार्टी नेतृत्व से खफा चल रहे थे. इसी बीच उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात की थी. बाद में उन्होंने सीपीआई मुख्यालय में अपना दफ्तर भी खाली कर दिया है.

अब चर्चा है कि कन्हैया पाला बदलने की तैयारी में हैं. प्रशांत किशोर की मौजूदगी में उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से दो बार मुलाकात की है. कन्हैया को कांग्रेस खेमे में लाने की जिम्मेदारी कई नेताओं को सौंपी गई है. बिहार से कांग्रेस पार्टी के विधायक शकील अहमद के अलावा जौनपुर सदर के पूर्व विधायक मोहम्मद नदीम जावेद भी कन्हैया के संपर्क में हैं.

दरअसल बिहार में कांग्रेस पार्टी को भी युवा चेहरे की तलाश है. पार्टी को पिछले 5 विधानसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली है. कांग्रेस को 2005 के फरवरी वाले चुनाव में 10 सीटें मिली थी, जबकि अक्टूबर 2005 चुनाव में घटकर संख्या 9 रह गई. 2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महज 4 सीटों पर सिमट कर रह गई. हालांकि 2015 में आंकड़ा बढ़ा और 27 सीटें मिली. वहीं, 2020 में आंकड़ा घटकर 19 रह गया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में मात्र एक सीट (किशनगंज) पर जीत मिली थी.

कन्हैया कुमार का विवादों से गहरा नाता रहा है. 2015 में जेएनयू के छात्र संघ चुनाव में कन्हैया कुमार को जीत हासिल हुई थी. जेएनयू में ही देश विरोधी नारे लगने के बाद कन्हैया कुमार सुर्खियों में आए थे और उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ था.

बिहार कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता राजेश राठौर कहते हैं कि देश के कई नेता राहुल गांधी के संपर्क में हैं. जिस किसी को भी पार्टी और हमारे नेता में भरोसा है, कांग्रेस उसका सम्मान करती है. हालांकि सीपीआई नेता इरफान फातमी ने कहा है कि कन्हैया कुमार किसी दल में नहीं जा रहे हैं. वह हमारे साथ थे, साथ हैं और आगे भी रहेंगे. उनकी की लोकप्रियता से घबराकर कुछ लोग अफवाह उड़ा रहे हैं.

वहीं, आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद कहते हैं कि कन्हैया कुमार समझदार नेता हैं. वे देश की राजनीति को वह बेहतर समझते हैं. कांग्रेस में वे शामिल हो रहे हैं या नहीं, इस मुद्दे पर राहुल गांधी या कन्हैया कुमार ही बेहतर बता सकते हैं. उधर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि कन्हैया पर देशद्रोह का आरोप है. उन्हें कोई भी पार्टी स्वीकार नहीं करेगी. बेगूसराय की जनता ने भी उनको खारिज कर चुकी है. अब वह ऐसे नेता के साथ गलबहिया कर रहे हैं, जो पाकिस्तान की भाषा बोलता है.

इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि कन्हैया कुमार राजनीतिक आशियाने की तलाश में तो हैं. उन्हें लगता है कि वे कांग्रेस में जाएंगे तो राजनीतिक सुरक्षा ज्यादा मिलेगी. सीट बंटवारे की हालत में भी आगे टिकट मिलने की संभावना बनी रहेगी. डॉ. संजय कहते हैं कि आज की राजनीति में सिद्धांत मायने नहीं रखता.

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