सोनभद्र। जब से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी है तभी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह सोच रही है कि यदि भारत की यदि तस्वीर बदलनी है तो गांव को विकसित करना होगा। अपने इसी सोच को अमली जामा पहनाने के लिए प्रधानमंत्री ने कई ऐसी योजनाओं की आधारशिला रखी जिनसे गांव की तरक्की की नई इबारत लिखी जा सके ।जैसे गाँवो को स्वच्छ बनाने के लिए स्वच्छ भारत मिशन के तहत सौचालय निर्माण तथा गांव की जनता को स्वच्छ पेयजलापूर्ति के लिए हर घर नल योजना।इतना ही नही गांवों के विकास को गति देने के लिए चौदहवें व पन्द्रहवें वित्त का पैसा सीधे ग्रामपंचायत के खाते में जाने लगा।इसका असर भी दिखाई देता है ।गांव अब खुद अपने तरक्की की इबारत लिख रहे हैं।परंतु सोनभद्र में कुछ दूसरी तस्वीर भी दिखती है। ऐसा प्रतीत होता है कि पंचायत विभाग के अधिकारी दिन रात केवल उन रास्तों की तलाश में लगे हैं जिससे उनकी गोटी फिट हो जाये।
यदि ऐसा नही होता तो गांव की तस्वीर कुछ और ही होती।चूंकि सोनभद्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में उच्चधिकारियों की नजर नहीं पड़ती और यहीं से फाइलों में कार्य कम्प्लीट दिखाकर गोलमाल का खेल शुरू होता है।विन्ध्य लीडर समाचार पत्र जब कुछ कार्यों की पड़ताल करने गांव में पहुची तो भ्र्ष्टाचार की कहानी परत दर परत खुलने लगी ।कुछ कार्यों की विस्तृत वर्णन इस प्रकार है जो केवल कागज पर ही दिखाई देंगे।
विकास खण्ड म्योरपुर के ग्रामपंचायत चंदुआर में दो सोलर पेयजल प्लांट स्थापित कर उनकी जियो टैगिंग भी की जा चुकी है परंतु उक्त सोलर पेयजल प्लांट चंदुआर में कहीं ढूंढने से भी नहीं मिला।आखिर यह किस तरह का विकास है जो कागज पर ही दिखता है।वास्तविक धरातल पर नहीं । आपको बताते चलें कि विकास कार्यों में भ्र्ष्टाचार को कम करने के प्रयास में वर्तमान भाजपा सरकार टेक्नोलॉजी के प्रयोग पर अधिक जोर दे रही है इसी कड़ी में कार्यों की जियो टैगिंग कराई जा रही है।इसमें कार्यों की भौतिक सत्यापन का पूरा प्रबन्ध किया गया है परंतु पंचायत विभाग के लोग लगता है इसका भी तोड़ निकाल चुके हैं।तभी तो जियो टैगिंग में दिख रहा चंदुआर का सोलर वाटर पंप धरती पर ढूंढे नहीं मिल रहा।यही नहीं सोनभद्र में बिना कोटेशन बिना टेंडर के कई ग्रामपंचायतों में सोलर वाटर पंप का अधिष्ठापन किया जा चुका है जिनकी कोई उपयोगिता नहीं है।
ऐसा लगता है कि सिर्फ सोलर वाटर पंप की स्थापना पर ही पंचायत विभाग का जोर है।यहाँ आपको यह भी ध्यान योग्य है कि विकास विभाग के जिम्मेदार लोगो का उसकी उपयोगिता पर ध्यान क्यों नहीं है। केवल पंचायत विभाग में आये धन को खर्च करना ही लगता है मकसद बन चुका है।सवाल यह भी है कि बिना सार्वजनिक टेण्डर के ही ग्रामपंचायतें किस आधार पर सोलर वाटर पंप की स्थापना करा रही हैं ? पंचायत विभाग के जिम्मेदार लोग चुप्पी क्यों साध ली हैं ? इस तरह के कई सवाल हैं जिनका जबाब मिलना बाकी है।