अजय भाटिया
रेलवे से भूमि विवाद का मामला
चोपन । सोनभद्र। जी हां यह सच है कि अगर बंद बोतल ( पांच छह दशकों से बंद फाईलें) से रेलवे का जिन्न बाहर निकला तो नगर का अधिकांश हिस्सा ध्वस्त हो जाएगा । ध्वस्तीकरण की अगर कार्यवाही हुई तो हजारों परिवार प्रभावित होंगे।
पूर्व मध्य रेलवे, चोपन में 1960 – 70 के दशक में खरीदी गई अपनी जमीनो को 1962-63 के जिस नक्शे के आधार पर तलाश कर काबिज होने की कवायद में जुटा है अगर उसे अमलीजामा पहनाया गया तो आने वाले दिनों में चोपन वीरान हो जाएगा। वर्तमान में रेलवे नक्शे के मुताबिक प्रीत नगर में अपनी जमीने खोजने में लगा है। प्रीतनगर क्षेत्र के सैकड़ों परिवारों को रेलवे ने अतिक्रमण कारी मानते हुए उनकी जमीनों को 15 दिनों में खाली करने की नोटिसें पंजीकृत डाक द्वारा भेजनी शुरू कर दी है।
इस संदर्भ में प्रीत नगर वासियों को बचाने की पैरवी कर रहे अधिवक्ता अमित सिंह ने कहा कि रेलवे द्वारा बिना पत्रांक एवं दिनांक के प्रीतनगर वासियों को भेजी जा रही नोटिसे गलत हैं। रेलवे के अधिकारी लोगों के बीच डर का माहौल बना रहे हैं।
नागरिकों से आपसी विद्वेष त्यागकर इसकी कानूनी लड़ाई लड़ने की बात करते हुए अधिवक्ता सिंह ने कहा कि अगर एकजुट होकर इसकी कानूनी लड़ाई न लड़ी गई तो आने वाले दिनों में प्रीत नगर ही नहीं अपितु चोपन के तमाम क्षेत्रों में तबाही का मंजर दिखाई देगा।
रेलवे के मानचित्र एवं कागजातों के मुताबिक बस स्टैंड से लेकर मस्जिद तक, गौरव नगर में एसबीआई कटरा के पीछे से होते हुए वन विभाग की चारदीवारी तक, आर्य समाज से अवकाश नगर तक के कुछ हिस्से, यूको बैंक का निकटवर्ती मोहल्ला, चोपन गांव और रेलवे स्टेशन के पीछे की बस्ती सहित कई अन्य क्षेत्र रेल भूमि है।
इन क्षेत्रों में राज्य सरकार द्वारा रजिस्ट्री की गई जमीनों के अभिलेखों को रेलवे मानने को तैयार नहीं है। इस मामले में भविष्य क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।