Friday, April 19, 2024
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आंदोलन आजादी का :सलखन गांव के दो महान सपूत।

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दीपक केशरवानी

सोनभद्र। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में सोनभद्र जनपद के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों द्वारा किए गए त्याग, तपस्या, देशसेवा, क्रांतिकारी आंदोलनों में सहभागिता, दानशीलता की गौरव गाथा सोनभद्र के इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। आजादी के पूर्व सोनभद्र जनपद के आदिवासी बाहुल्य गांव सलखन के दो भाइयों ने स्वाधीनता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए देशभक्त एवं समाजसेवी होने का परिचय दिया था।


इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार-“
शंकर प्रसाद गोड का जन्म सन 1913 में ग्राम सलखन में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री शिव गोविंद प्रसाद और माता का नाम सोनिया देवी था। आप सन 1937 में कांग्रेस में आएं।सन 1938 में ग्राम सलखन में अभावग्रस्त बालकों की शिक्षा के लिए सन 1938 में एक विद्यालय की स्थापना किया। इसमें बालक- बालिकाएं शिक्षा प्राप्त करते थे। सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको पुलिस द्वारा नजरबंद कर दिया गया और आपकी बंदूक भी जप्त कर ली गई थी। जिसके कारण आप द्वारा स्थापित विद्यालय संचालन एवं आर्थिक संकट के अभाव में बंद हो गया।

सलखन में सन 1951 में देशभक्त, स्वतंत्रा संग्राम सेनानी, गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा स्थापित सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी के तत्कालीन अध्यक्ष ह्रदय नाथ कुंजरू मंत्री श्री रमाशंकर मिश्र तहसील दुद्धी और रॉबर्ट्सगंज के आर्थिक, सामाजिक सर्वेक्षण के लिए आए और इस सर्वेक्षण के परिणाम स्वरूप रॉबर्ट्सगंज तहसील के ग्राम सलखन में एक जूनियर हाई स्कूल की स्थापना किया ।
सन 1954 ईस्वी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शंकर प्रसाद गोड ने विद्यालय की स्थापना के लिए 5 बीघा जमीन, ग्रामीणों, शिक्षकों के सहयोग से तीन शिक्षण कक्ष खपरैल का बरामदा बनवा कर दान में दे दिया था।
इस समाजसेवी, देशभक्त, सेनानी की मृत्यु सन 1965 ईस्वी में हुई। वर्तमान समय में यह विद्यालय राजा बलदेव दास बिरला इंटरमीडिएट कॉलेज पटवध के नाम से संचालित है।

इनके चचेरे भाई शिवनाथ प्रसाद गोंड* का जन्म 1912 ईस्वी में सलखन में हुआ था इनके पिता का नाम दुखनती राम गोंड, माता श्रीमती पंचू देवी था। आप 1940 में गांधी जी के आवाहन पर कांग्रेस में आए।
सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन भाग लेने के कारण आपको भारत प्रतिरक्षा कानून की धारा 34/38 के तहत गिरफ्तार कर 1 वर्ष की कड़ी कैद और 200 रुपया का जुर्माने की सजा दी गई ।
आजादी के आंदोलन के अलावा इन्होंने अनेक सामाजिक कार्य किया। सलखन बाजार में अपनी 3 बीघा जमीन दान देकर अस्पताल का निर्माण कराया (जो आज प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र- सलखन के नाम से जाना जाता है) और सलखन में दो तालाब और मारकुंडी स्थित- बलुई बांध बनवाने में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
इनकी मृत्यु कैंसर जैसे असाध्य रोग के कारण सन 1989 में हुई । इन दोनों महान देशभक्त, क्रांतिकारियों, समाजसेवियों की गौरव गाथा आज भी लोगों की जुबान पर है ।

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