स्पष्ट दिखने वाले भ्रष्टाचार को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में रोकने के लिए नियमावली में संशोधन की जरूरत है। प्राय: देखा गया है कि जिसकी भी प्रदेश में हुकूमत होती है, उसी का जिला पंचायत अध्यक्ष, क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष ( ब्लॉक प्रमुख) निर्वाचित होते हैं। उसके पीछे की कहानी किसी से छिपी नहीं है। इन दोनों पदों में सीधे तौर पर आम मतदाता की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है।

प्रभावी धन बल, बाहुबल
जिला पंचायत अध्यक्ष भी वहीं होता है, जो पहले जिला पंचायत सदस्य हो। ठीक यहीं स्थिति क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष में भी है। क्षेत्र पंचायत सदस्य ही क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष होता है। आम जनता तो जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य का सीधे चुनाव करती है। इसके बाद शुरू होती है, कहानी धनबल और बाहुबल की।
क्यों लगाते हैं पैसा!
कोई जिला पंचायत अध्यक्ष और क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष के चुनाव इसलिए पैसा नहीं लगाता कि उसे केवल सम्मान प्राप्त करना है, बल्कि वह पूजी निवेश करता है। जैसे ही वह या उसका आदमी इन कुर्सियों पर बैठता है। सारे ठीके उसके या उसके आदमियों के हो जाते हैं। आप सोचते होंगे कि नियमानुसार ही तो ठीके मिलते होंगे। कागजों का पेट किसी तरह से भर दिया जाता है। लूट खसोट शुरु हो जाती है। पूरे प्रदेश में लाखों करोड़ के बजट का अमूमन बंदरबाट हो जाता है। काम की ऐसी तैसी हो जाती है। अपवाद में कुछ जिला पंचायत अध्यक्ष, क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष हो सकते हैं, जिनका चुनाव और काम ठीक हो।
पूरे प्रदेश की कहानी एक जैसी
पूरे उत्तर प्रदेश की यहीं कहानी है। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। जनता से लेकर हुकूमत तक इस बात को जानती है पर सुधार हेतु सार्थक कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। जो विपक्ष में रहता है, वह इन बातों को उठाता है और सत्ता पक्ष में आते ही मलाई खींचने लगता है। भ्रष्टाचार ही वह नासूर है, जो विकास में बाधक तो है ही। आक्रोश और उग्रवाद का प्रमुख कारण भी है।
टैक्स की ऐसी तैसी
सरकार विभिन्न प्रकार के टैक्स वसूली करती है, जिससे विकास का दंभ भरा जाता है। जमीन पर हकीकत इसके उल्टा है। विकास तो जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत भी करते हैं पर गुणवत्ता हीन और कागजों पर ज्यादा करते हैं।
खुद का विकास, क्षेत्र का नाश
जब सदस्य नोट लेकर वोट करेंगे तो उनका खुद का विकास हो जाएगा, क्षेत्र का विकास नहीं हो पाता है। किस मुंह से अध्यक्ष से क्षेत्र में विकास की बात करेंगे, जब नोट लेकर वोट किया है।
जनता से सीधे हो चुनाव
आम जनता जिला पंचायत अध्यक्ष और क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सीधे करे तो इन पदों पर बैठे हुए लोगों की व्यवहारिक ताकत भी बढ़ेगी और जनता के प्रति प्रतिनिधियों में जवाब देही भी होगी। सीधे चुनाव से जन प्रिय व्यक्ति ही इन पदों तक पहुंच सकेगा।
बदली सरकार, बदले अध्यक्ष
प्रांत में चुनाव के बाद जैसे ही नई सरकार बनती है, वैसे ही इन पदों पर उसी दल के लोग आसीन होने लगते हैं। कहीं जांच का दबाव तो कहीं अविश्वास प्रस्ताव की आंधी आती है। जो कार्य अभी अच्छे थे, सरकार बदलते ही वे खराब हो जाते हैं। कई स्थानों पर अध्यक्ष कुर्सी बचाने के लिए दल ही बदल लेते हैं।
नौकरशाह भी हिलाते दुम
जैसे हर क्षेत्र में गिरावट आई है, वैसे ही नौकर शाह भी हो गए हैं। जो ईमानदार है, उनमें से बहुत कम ही जिलों या मंडल में तैनात होते हैं। वे राजभवन, सचिवालय आदि में सिमटते का रहे हैं। जब ईमानदारी के बजाय लूटने के इरादे से जिलों में नौकर शाह आएंगे तो उस देश का साक्षात भगवान ही मालिक है। जिला पंचायत सदस्यों या क्षेत्र पंचायत सदस्यों पर अघोषित तौर पर इन पदों पर बैठे हुए जिम्मेदारों के शह पर वर्दी के धौंस से मनमाना किया जाता है और सत्ता दल या उसके समर्थक उम्मीदवार को जिताया जाता है।
लाखों, करोड़ों में बिकते वोटर
क्षेत्र पंचायत सदस्य को कई लाख और जिला पंचायत सदस्य करोड़ों में खरीदे जाते हैं। गाड़ी आदि भी वोट के लिए बांटे जाते हैं। चुनाव लड़ने वाला या उसके समर्थक यह सब करते हैं। जानवरों की तरह बिकने वाले इन सदस्य वोटरों से कोई सवाल भी पूछ कर क्या कर सकता है !
उम्मीदवार भी बिक जाते
एक बार तो सोनभद्र के एक ब्लॉक में ब्लॉक प्रमुख पद के उम्मीदवार को खरीद लिया गया और वह अपना नामांकन ही वापस ले लिया था। निर्विरोध चुनाव हो गया। क्षेत्र पंचायत के अधिकांश सदस्यों को खरीदना ज्यादा महंगा था, जबकि एक उम्मीदवार को खरीदना अपेक्षाकृत सस्ता पड़ा होगा।
सीधे चुनाव से बढ़ेगी पारदर्शिता
जब जिला पंचायत अध्यक्ष और क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष का चुनाव में आम मतदाता होंगे तो काम में पारदर्शिता बढ़ेगी। विकास के धन का कुछ बेहतर उपयोग ही सकेगा। इन पर धन बलियों, बाहु बलियों का असर कम पड़ेगा।
कैबिनेट कर सकती हैं संशोधन
प्रदेश की कैबिनेट त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जरूरी संशोधन कर सकती है। यह उत्तर प्रदेश जैसे प्रांत के लिए अत्यंत जरूरी भी है। ताकि प्रदेश के विकास में लाखों करोड़ रूपये को वास्तविक विकास में लगाया जा सके।
लोकतंत्र को मिलेगी मजबूती
सत्ता के विकेंद्रीकरण यानी प्रत्यक्ष लोकतंत्र की मांग आजादी के पहले से रही और इन्हीं बातों को ख्याल में रखकर पंचायती राज के नियम बने। पदों का अप्रत्यक्ष चुनाव प्रत्यक्ष लोकतंत्र नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष लोकतंत्र की ओर ले जाता है। धीरे-धीरे राजतंत्र की ओर ले जाता है।
विधान सभा, लोकसभा का रहे पैटर्न
जिला पंचायत अध्यक्ष, क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष का चुनाव में दलीय और निर्दलीय दोनों की व्यवस्था रहे पर चुनाव चिह्न घोषित करने के बाद कम से कम 15 दिन का समय अवश्य दिए जाएं, जिससे निर्दलीयों को चुनाव चिह्न आम मतदाता तक पहुंचाने में दिक्कत न हो।
लेखक स्तंभकार और प्रवक्ता हैं