Friday, March 29, 2024
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मोदी राज में मनरेगा में हुआ 935 करोड़ का घोटाला

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मनरेगा में घोटाला इसलिए हो सका क्योंकि नियमानुसार हर छह महीने में इसकी ऑडिट नहीं कराई गई।

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नई दिल्ली । ग्रामीण विकास मंत्रालय के ऑडिट में मनरेगा में हुए 935 करोड़ के घोटाले का आंकड़ा सामने आया है। कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इसका खुलासा करते हुए कहा कि पिछले चार वर्षों में ग्रामीण विकास मंत्रालय के ऑडिट में मनरेगा में हुए 935 करोड़ के घोटाले का आंकड़ा सामने आया है। मनरेगा में घोटाला इसलिए हो सका क्योंकि नियमानुसार हर छह महीने में इसकी ऑडिट नहीं कराई गई। उन्होंने मांग की कि सरकार हर छह महीने में मनरेगा के काम की ऑडिट की व्यवस्था बहाल करे। पवन खेड़ा ने बताया कि मोदी सरकार ने 935 करोड़ के घोटाले की इस बड़ी राशि की वसूली में बुरी तरह फेल रही है। 935 करोड़ में से महज 12.50 करोड़ रूपए ही वापस आ पाए हैं।

कांग्रेस ने मोदी सरकार पर गरीबों का पैसा हजम करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में 935 करोड़ रूपये का घोटाला हुआ है। पार्टी ने यह भी कहा कि इतनी बड़ी रकम को वसूल करने में सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। पवन खेड़ा के मुताबिक, साल 2017-18 से 2020-21 के दौरान 2.65 लाख ग्राम पंचायतों का सोशल ऑडिट किया गया। खेड़ा ने कहा कि इस सोशल ऑडिट यूनिट द्वारा किए गए ऑडिट में जो तथ्य सामने आए हैं उनमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि ज्यादातर मामले वित्तीय गड़बड़ी के थे, जिनमें घूसखोरी भी शामिल थी।

पवन खेड़ा ने बताया कि मनरेगा में सबसे ज्यादा 245 करोड़ का घोटाला तमिलनाडु में हुआ, जब वहां भाजपा के सहयोग वाली सरकार थी। इसी प्रकार भाजपा और जदयू के शासन वाले बिहार में 12.34 करोड़ का घपला हुआ तो झारखंड में जब भाजपा की सरकार थी तब वहां 51.30 करोड़ का घपला सामने आया है। खेड़ा ने राजस्थान की कांग्रेस सरकार की यह कहकर पीठ थपथपाई कि यहां मनरेगा में एक भी पैसे का घोटाला नहीं हुआ, जो यह बताता है कि जहां सजग सरकारें हैं, वहां घपला नहीं पाया गया।

गौरतलब है कि मनरेगा रोजगार गारंटी योजना ही कोरोना संकट से बढ़ती बेरोजगारी में एकमात्र सहारा रह गया था। लोगों को रोजगार देने की उचित नीति नहीं होने के कारण मोदी सरकार को अपने कार्यकाल में मनरेगा का बजट लगभग दोगुना करना पड़ा था और हाल ही में घोषित अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये को जोड़ दें तो ये करीब तीन गुना हो जाएगा।

याद करें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 फरवरी 2015 को लोकसभा में मनरेगा का मखौल उड़ाते हुए इसे कांग्रेस की नाकामियों का स्मारक बताया था।उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि मेरी राजनीतिक सूझ बूझ कहती है कि मनरेगा को कभी बंद मत करो। मैं ऐसी गलती नहीं कर सकता हूं।क्योंकि मनरेगा आपकी विफलताओं का जीता जागता स्मारक है। आजादी के 60 साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा।ये आपकी विफलताओं का स्मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा।

नरेंद्र मोदी जब ऐसा बोल रहे थे तो सदन में उनके सहयोगी हंस रहे थे और तालियां पीट रहे थे।हालांकि अब कोरोना महामारी की वजह से उपजे गंभीर संकट में मोदी सरकार को मनरेगा का बजट बढ़ाना पड़ा है और वे इसी के सहारे देश में खड़ी हुई बेरोजगारी की भयावह समस्या का समाधान ढूंढ रहे हैं।सरकार को मनरेगा का बजट इसलिए भी बढ़ाना पड़ रहा है क्योंकि केंद्र के पास इसके अलावा कोई भी ऐसा मजबूत ढांचा या नीति नहीं है जो इतनी बड़ी आबादी को गारंटी के साथ काम दिला सके।

मनरेगा कानून बनाने में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के अलावा कई बड़े अर्थशास्त्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और देश की जमीनी हकीकत से वाकिफ लोगों का बहुत बड़ा योगदान था। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को साल 2005 में संसद से पारित किया गया और शुरू में इसके तहत साल में 100 दिन रोजगार देने का काम सुनिश्चित किया गया था।

साल 2014-15 में मनरेगा का बजट 33,000 करोड़ रुपये थे, जिसे 2020-21 में बढ़ाकर 61,500 करोड़ रुपये करना पड़ा। पिछले सात सालों में मनरेगा का बजट करीब तीन गुना बढ़ गया है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के हालिया आंकड़ों के मुताबिक भारत में बेरोजगारी दर मार्च महीने में सात फीसदी से बढ़कर अब 23 फीसदी से ज्यादा हो गई है। सीएमआईई द्वारा किए गए सर्वे में करीब 84 फीसदी परिवारों ने बताया था कि उनकी आय में गिरावट आई है।

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