Friday, March 29, 2024
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तीरथ सिंह रावत के बाद किसकी खुलेगी किस्मत?

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देहरादून । त्रिवेंद्र सिंह रावत के विरुद्ध उत्तराखंड भाजपा विधायकों में उपजे आक्रोश को संभालने के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने तीरथ सिंह रावत पर दांव लगाया था, लेकिन संवैधानिक बाध्यता के चलते तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाए रखना संभव नहीं रह गया है। तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद शनिवार को देहरादून में विधायक दल की बैठक में नया नेता चुना जाएगा।

इसी के साथ ही एक बार फिर नए मुख्यमंत्री को लेकर अटकलें लगाई जाने लगी हैं। उत्तराखंड के ब्राह्मण-ठाकुर के स्थानीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पार्टी एक बार फिर किसी ठाकुर नेता को अवसर दे सकती है। इसके पहले भी त्रिवेंद्र सिंह रावत को इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री बनाया गया था। त्रिवेंद्र सिंह के इस्तीफे के बाद तीरथ सिंह रावत भी इसी समीकरण के मद्देनजर आलाकमान की पसंद बने थे। 

अब एक बार फिर इसी बात की उम्मीद है कि पार्टी किसी ठाकुर नेता को ही प्रदेश की जिम्मेदारी दे सकती है। इस दौड़ में तीरथ सरकार में मंत्री धन सिंह रावत एक बार फिर सबसे आगे हो सकते हैं। पिछली बार भी उनका नाम आखिर तक चलता रहा था, लेकिन बाजी तीरथ सिंह रावत के हाथ लगी थी।

नरेंद्र सिंह तोमर हो सकते हैं पर्यवेक्षक
नए मुख्यमंत्री का चयन भी भाजपा विधायकों की पसंद को ध्यान में रखते हुए बनाया जाएगा। संभावना है कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पार्टी पर्यवेक्षक बनाकर भेज सकती है। वे रविवार को देहरादून पहुंचकर विधायक दल की बैठक में भाग ले सकते हैं जहां पार्टी के विधायकों की राय को ध्यान में रखते हुए नए मुख्यमंत्री का नाम सामने आ सकता है।

सतपाल महाराज भी आगे
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए सतपाल महाराज भी मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। वे न केवल धार्मिक नेता होने के कारण एक बड़ी आबादी पर अपना प्रभाव रखते हैं, बल्कि एक बड़े वोट बैंक को भी साधते हैं। जातीय समीकरण भी उनके पक्ष में हैं। ऐसे में पार्टी के विधायक दल में उनके नाम पर भी विचार हो सकता है।

हहालांकि, भाजपा में मुख्यमंत्री पद केवल उसे ही देने की परंपरा रही है, जो भाजपा या आरएसएस की पृष्ठभूमि से आए हुए कार्यकर्ता होते हैं। अभी तक केवल असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ही इसके अपवाद हैं, जो कांग्रेस से आकर भी भाजपा में मुख्यमंत्री पद तक पहुंच सके हैं। इस बात को ध्यान रखते हुए भी सतपाल महाराज की तुलना में धन सिंह रावत का पलड़ा भारी पड़ सकता है।

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