Wednesday, April 24, 2024
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यूपी : मायावती सतीश मिश्रा को बना सकती हैं सीएम पद का उम्मीदवार

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विंध्यलीडर की विशेष रिपोर्ट

यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा को सत्ता पर काबिज करने के लिए बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती सतीश मिश्रा को मुख्यमंत्री चेहरा बनाने पर विचार कर रही हैं. बसपा के सूत्रों के अनुसार मायावती पार्टी के नेताओं से इस पर विचार-विमर्श कर रही हैं.

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लखनऊ । यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में फिर सत्ता हासिल करने के लिए बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के बाद एक और मास्टर स्ट्रोक खेलने पर पर गंभीरता से विचार कर रही हैं. सूत्रों का दावा है कि बसपा को सत्ता में वापस लाने के लिए खुद को मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी से पीछे कर मायावती बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर सकती हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर बसपा ऐसा करती है तो निश्चित रूप से यूपी की राजनीति एक नया मोड़ लेगी और सभी राजनीतिक पार्टियों के सामने एक चुनौती हो सकती है. बसपा को इस मास्टर स्ट्रोक से पूर्वांचल ही नहीं पश्चिमी यूपी में फायदा हो सकता है. बसपा सुप्रीमो मायावती की इस चाल से सभी राजनितिक दलों को भी फिर से नए समीकरण बनाने पड़ सकते हैं.

नेताओं से फीडबैक ले रहीं बसपा सुप्रीमो
पार्टी सूत्रों के अनुसार ब्राह्मण समाज को लामबंद करने के लिए सतीश मिश्रा को सीएम कैंडिडेट घोषित करने को लेकर बसपा के अंदर भी तेजी से चर्चा हो रही है. मायावती बसपा के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के फायदे और नुकसान के बारे में भी पार्टी के अंदर नेताओं से फीडबैक ले रही हैं. ऐसे में काफी समय से प्रबुद्ध सम्मेलन करने को लेकर ब्राह्मण समाज को जोड़ने की कोशिश कर रहे सतीश चंद्र मिश्रा सीएम चेहरा बनाने से पार्टी को फायदा हो सकता है. मायावती ने पिछले दिनों प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि बसपा के ब्राह्मण जोड़ो अभियान प्रबुद्ध सम्मेलनों से विपक्षी दल परेशान हैं. योगी सरकार की तरफ से प्रबुद्ध सम्मेलन करने में अड़ंगेबाजी लगाई जा रही. ऐसे में मायावती सतीश मिश्रा को यह बड़ी जिम्मेदारी देकर सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने को लेकर बड़ा मास्टर स्ट्रोक चल सकती हैं.सतीश मिश्रा बन सकते हैं बसपा का सीएम चेहरा.

मायावती समीकरणों पर कर रहीं मंथन
दरअसल, यूपी की राजनीति में बसपा दलितों के वोट बैंक के आधार पर राजनीति करती रही हैं. मायावती को लग रहा है कि अगर ब्राह्मण चेहरे के रूप में सतीश चंद्र मिश्रा को आगे किया जाएगा, तो इसका बड़ा फायदा बसपा को विधानसभा चुनाव में हो सकता है. दलितों के 23% वोट बैंक में ब्राह्मणों का अगर 13% वोट बैंक एक साथ लाने में मायावती सफल होती हैं, तो स्वाभाविक बात है कि इसका फायदा मायावती की पार्टी को ही होगा. बसपा के सूत्रों के अनुसार क्या दलितों के बीच सतीश चंद्र मिश्रा को मायावती के बराबर तवज्जो मिल पाएगी और बसपा कैडर के जो मूल वोट बैंक से जुड़ी जो जातियां हैं, क्या वह सतीश चंद्र मिश्रा को स्वीकार कर पाएंगी. इन्हीं सब पहलुओं पर विचार करते हुए मायावती पार्टी के कई नेताओं से अंदरखाने फीडबैक ले रही हैं. सतीश मिश्रा को अगर मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित किया जाता है इसके क्या फायदे होंगे और क्या नुकसान होगा. इन्हीं सभी समीकरणों पर मायावती नजर बनाकर मंथन में जुटी हुई हैं.

2007 में सतीश मिश्रा सोशल इंजीनियरिंग करने में हुए थे सफल
बता दें कि बसपा सुप्रीमो मायावती 2007 के विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला दिया था और इसी फार्मूले के तहत ब्राह्मण दलित के सहारे सरकार बनाने में बसपा सफल हुई थी. ऐसे में अब सोशल इंजीनियरिंग के साथ-साथ ब्राह्मण चेहरे के रूप में मायावती सतीश मिश्रा को आगे करने पर मंथन कर रही हैं. 2007 के विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा ने सतीश मिश्रा को बड़ी जिम्मेदारी दी थी और उनकी अध्यक्षता में प्रदेशभर में सभी विधानसभा क्षेत्रों में प्रबुद्ध सम्मेलन किया गया था. इस चुनाव में अधिक संख्या में ब्राह्मण, दलित और अति पिछड़े समाज को टिकट में भागीदारी दी गई थी और यह रणनीति सफल हुई और इसी का परिणाम था कि बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बन पाई थी.

सतीश मिश्रा का राजनीतिक कद
बसपा के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में अपनी पहचान बना चुके सतीश मिश्रा इस समय बसपा से राज्यसभा के सांसद हैं. सतीश मिश्रा मूल रूप से कानपुर के निवासी हैं और वकील हैं. वह साल 1998-99 में यूपी बार काउंसिल के अध्यक्ष भी रहे हैं. सतीश मिश्रा 2002 में प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. जनवरी 2004 से लगातार बसपा के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में काम कर रहे हैं. सतीश मिश्रा जुलाई 2004 से लगातार बसपा से राज्यसभा सदस्य बन रहे हैं. इसके अलावा वह संसद की कई समितियों के भी सदस्य बनते रहे हैं. पिछली बार साल 2016 में बसपा ने सतीश मिश्रा पर विश्वास करते हुए राज्यसभा के लिए भेजा. मायावती खुद राज्यसभा जाने के बजाय अंतिम बार सतीश चंद्र मिश्रा को ही राज्यसभा भेजने का फैसला किया था. जो अपने आप में सतीश चंद्र मिश्रा के मायावती के साथ करीबी रिश्ते और ब्राह्मण चेहरे को लगातार आगे रखने की उनकी कोशिश के रूप में नजर आती है.

चौंकाने वाले फैसला होगा
वरिष्ठ पत्रकार शिव शंकर गोस्वामी कहते हैं कि बसपा बहुजन हिताय और दलितों के वोट बैंक के आधार पर राजनीति करती है. देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह इतना बड़ा फैसला कर पाती है और सतीश चंद्र मिश्रा को बहुजन समाज पार्टी के लोग स्वीकार कर पाएंगे. वैसे बसपा के अंदर इस बात की चर्चा है कि सतीश मिश्रा को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया जाए. अगर ऐसा होता है तो बसपा को इसका फायदा भी मिल सकता है. गोस्वामी कहते हैं कि पिछले कुछ समय से यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों को जोड़ने को लेकर सभी राजनीतिक दल हाथ-पैर मार रहे हैं. ऐसे में अगर चेहरे के रूप में सतीश मिश्रा को बसपा आगे करती है तो यह काफी चौंकाने वाला फैसला होगा.

फायदे के साथ नुकसान की भी संभावना वरिष्ठ पत्रकार शिव शंकर गोस्वामी कहते हैं कि पिछले कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है कि यूपी की राजनीति सिर के बल खड़ी हो गई है. जो राजनीति हिंदुत्व और सवर्णों को आधार लेकर चलती थी वह आज सोशल इंजीनियरिंग को साथ लेकर चल रही है और ओबीसी जातियों खासकर नॉन यादव जाति को लेकर आगे बढ़ रही है. इसके साथ ही दलित वोट बैंक में गैर- जाटव वोट बैंक में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश राजनीतिक दलों की तरफ से की जा रही है. सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले पार्टियां सपा, बसपा इन दिनों उस नरेटिव का शिकार हो गई है, जिसमें वह ब्राह्मणों की नाराजगी को भुनाना चाहती हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि ब्राह्मण समाज एक अच्छा प्रोप्रोगेटर है और निश्चित तौर एक बड़े तबके को प्रभावित करता है. उन्होंने कहा कि बसपा के साथ ब्राह्मण समाज के आने से फायदा भी हो सकता है. लेकिन इसकी प्रतिक्रिया भी हो सकती है. खास करके दलित, ओबीसी या जो भाजपा से नाराज हुई है और वह बसपा में जाने की कोशिश में हैं, इन जातियों को धक्का लग सकता है. इस तरह की राजनीति को आगे करने से और उस पूरे सोशल इंजीनियरिंग का शिकार हो सकते हैं.

क्या मानसिक रूप से तैयार हो पाएंगी मायावती?
वरिष्ठ पत्रकार शिव शंकर गोस्वामी कहते हैं कि सतीश मिश्रा को सीएम चेहरा बनाना पॉलिटिकली मास्टर स्ट्रोक हो सकता है. उन्होंने कहा कि अपनी पूरी विचारधारा को उलट करके मायावती सत्ता हासिल करना चाहती हैं, सत्ता की चाबी अपने हाथ में रखना चाहती हैं. मुझे तो इस बात पर भी संदेह है कि क्या वह वास्तव में इसके लिए तैयार हो पाएंगी. अभी क्या बहुत इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो पाएंगी. गोस्वामी कहते हैं कि मायावती एक बेहतर रणनीति बनाने की कोशिश कर रही है कि बीजेपी का जो ब्राह्मण तबका है वह उनको मिल जाए और सपा की तरफ उस का रुझान न हो. क्योंकि सपा भाजपा से सीधे लड़ रही है. ब्राह्मण तबके की जो थोड़ी बहुत नाराजगी है मुख्यमंत्री के कारण, तो उस वर्ग को अपने पाले में खींचने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि क्या वह ब्राह्मण वोट को हासिल करके अपने समाज को भी जोड़ें रख पाएंगी या वैचारिक स्तर पर अंबेडकरवादी और बहुजन के विचारों से लैस होकर दलित समाज मायावती से ही कहीं दूर ना हो जाए. आने वाले दिनों में इसकी तस्वीर साफ होगी.

भाजपा की चुनावी राजनीति पर नहीं होगा कोई असर
भाजपा के प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य वरिष्ठ नेता अशोक मिश्रा कहते हैं कि बसपा किसे मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी यह अंदर का मामला है. लेकिन बसपा के साथ अब कोई भी आने वाला नहीं है. भाजपा अपने काम के आधार पर जनता के बीच जाएगी और दोबारा सरकार बनाने में सफल होगी. बसपा, सपा जाति धर्म की राजनीति करती है और इससे अब इन दलों का कोई फायदा नहीं होने वाला. मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बसपा किसे बनाती है यह उसका अपना फैसला होगा, भाजपा से इसका कोई मतलब नहीं है. सतीश चंद्र मिश्रा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित होने से भाजपा की चुनावी राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा. भाजपा अपनी सरकार की उपलब्धियों के आधार पर चुनाव मैदान में उतरेगी और चुनाव जीतेगी.

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