सोनभद्र। जनता दल यूनाइटेड का एक प्रतिनिधिमंडल जिलाध्यक्ष संतोष पटेल एड0 की अध्यक्षता में शुक्रवार को जिलाधिकारी से मुलाकात कर स्वास्थ्य विभाग में फैले भ्रष्टाचार की जाँच की मांग की।उक्त प्रतिनिधिमंडल द्वारा जिलाधिकारी को बताया गया कि इन दिनों जिले का स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा पर आसीन है। स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा केंद्र एवं पोषक सोनभद्र जिले के विभागीेय मुखिया मुख्य चिकित्साधिकारी स्वयं बने हुए हैं। जदयू जिलाध्यक्ष पटेल ने जिलाधिकारी को दिये शिकायती पत्र में बिंदुवार बताया कि किस प्रकार से जिले का स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार का पर्याय बना हुआ है। जिसे निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है-
- वर्तमान मुख्य चिकित्सा अधिकारी का वर्ष 2017 में चिकित्साधिकारी के पद पर जौनपुर जिले से सोनभद्र में स्थानांरण हुआ। किंतु वे सोनभद्र जिला चिकित्सालय में अपना पदीय योगदान न देकर अपनी निजी प्रैक्टिस करने में मशगूल रहे। जिसके कारण उ0प्र0 शासन में इनके बर्खास्तगी की फाइल तैयार कर ली गयी। तदुपरांत ये आनन- फानन में 2019 के अंतिम तिमाही में सोनभद्र जिला चिकित्सालय में आकर पदीय योगदान देने लगे। जिससे शासन में बर्खास्तगी की फाइल तो रूक गयी, लेकिन बिना विधिक अवकाश स्वीकृति के लगभग दो वर्ष तक गायब रहने का मामला अभी शांत नहीं हुआ था। इसी बीच इन्हें सोनभद्र जनपद का मुख्य चिकित्साधिकारी बना दिया गया। जो इनकी कार्यशैली पर सटीक कहावत बैठती है कि, ‘‘जब सैंया भए कोतवाल, अब डर काहे का।’’ इसी के तहत सीएमओ महोदय लगभग दो वर्ष के अवकाश स्वीकृति संबंधी विभागीय कोरम के बिना ही अपना पूरा दो वर्ष का वेतन /एरियर एक साथ ही ट्रेजरी से निकाल लिया। मिली जानकारी के मुताबिक जिसमें कुल 63,72,817 रू0 का भुगतान आया जिसमें इनकम टैक्स 19,11,845 रू0 तथा जीपीएफ- 4,80,000 रू0 तथा जीआईएस- 19,200 रू0 कुल डिडक्शन- 24,11,045 रू0 की समस्त कटौती के बाद शुद्ध रूप से 39,61,772 रू0 का सीएमओ महोदय को वेतन भुगतान किया गया है। जो निश्चित रूप से एक अत्यंत ही उच्च प्रकृति का गंभीर एवं दंडनीय एवं आर्थिक अपराध है जिसकी उच्चस्तरीय जांच की आवश्यकता है।
- मलेरिया निरीक्षक के रूप में जिले में लगभग 16-17 वर्षों से तैनात/ कार्यरत प्रवीण कुमार सिंह चार- चार विकास खंडों का चार्ज लेकर किस प्रकार से कार्य कर रहे हैं। जबकि 4 वर्षों तक ही मलेरिया निरीक्षक के पद पर कार्य करने वाले आनंद कुमार मिश्रा को उक्त सीएमओ ने ही शासन को रिपोर्ट भेजा था कि इनका स्थानांतरण किया जाना जनहित में आवश्यक होगा। फिर 17 वर्षों से तैनात पी. के. सिंह से इतनी हमदर्दी अथवा याराना क्यों?
- जबकि उक्त मलेरिया निरीक्षक श्री सिंह डी.डी.टी घोटाले के मुख्य सूत्रधार के रूप में कुख्यात हैं। परासी सेंटर का डी.डी.टी घोटाला जिसमें एक्सपायरी डी डी टी का जांच में पकड़ा जाना महोदय की जानकारी में भी है। इतना ही नहीं जिला चिकित्सालय के एक कमरे में किन परिस्थितियों में या किस मंशा से अनेक दवाएं अवैध रूप से बड़े पैमाने पर रखी गयी। पता चला है कि इसके मुख्य सूत्रधार भी एक मलेरिया निरीक्षक ही हैं। जिन्हें सीएमओ की खुली वरदहस्त प्राप्त है। जिसका (अवैध दवा भंडारण) सीएमएस ने विरोध भी दर्ज कराया था।
- इतना ही नहीं सीएमओ की खुली वरदहस्त का ही परिणाम है कि उक्त मलेरिया निरीक्षक पी. के. सिंह लगभग प्रतिदिन ही ट्रेजरी कार्यालय में 4-5 घंटे तक जमे रहते हैं। आखिर एक मलेरिया निरीक्षक को ट्रेजरी कार्यालय में प्रतिदिन क्या काम है या हो सकता है? यह भी जांच का एक गंभीर विषय है। महोदय अधोहस्ताक्षरी के इस बात/ दावे की सच्चाई जानने के लिए ट्रेजरी कार्यालय में लगे सीसीटीवी फूटेज को देखकर स्वयं ही जांच कर सकते हैं।
- कोरोना काल में अपने आर्थिक अवसरों की तलाश में मुख्य चिकित्साधिकारी इस कदर अंधे हो गए हैं कि न शासन के आदेशों/ निर्देशों का पालन करने की पड़ी है और न ही उन्हें आम जनता की जान से खिलवाड़ करने में कत्तई संकोच है। इसी का परिणाम है कि मार्च 2021 में चोपन विकास खंड के गुरमुरा अस्पताल पर कैंप लगाकर लगभग 900 स्थानीय आदिवासी ग्रामीणों को कोरोना का पहला टीका (कोविड वैक्सीनेशन) लगाया गया था। किंतु चार माह बीत जाने के बाद भी आज तक उक्त आदिवासी ग्रामीणों को कोविड वैक्सीनेशन का दूसरा डोज नहीं दिया गया है। इसके लिए सीएमओ समेत समस्त संबंधितों की पदीय कर्तव्यों के प्रति गंभीरतम प्रकृति की लापरवाही बरतने की जिम्मेवारी तय किए जाने की जरूरत है
- जदयू जिलाध्यक्ष श्री पटेल ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग समेत अन्य से भी शिकायत करते हुए मांग किया है कि मुख्य चिकित्साधिकारी, मलेरिया निरीक्षक पी.के. सिंह समेत समस्त जिम्मेवार लोगों के खिलाफ पदीय कर्तव्यों के प्रति लापरवाही तथा निजी आर्थिक हितों के वशीभूत पदीय अधिकारों का दुरूपयोग करने के लिए कानूनी कार्रवाई किया जाना चाहिए।